बुधवार, 21 अक्तूबर 2009

विभिन्न राज्यों में महिला विरोधी अपराधों का विश्लेषण

विभिन्न राज्यों में महिला विरोधी अपराधों का विश्लेषण
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----लीना मेहेंदले

साराश :- विभिन्न प्रान्तों में महिलाओं के विरूद्ध घटने वाले अपरोधों का विश्लेषण कई तरह से उपयोगी है। खास कर भौगोलिक दृष्टिकोण से किया जाय तो कई सामाजिक, आर्थिक तथा अन्य मुद्दे अधिक सपष्टता से उभर आते हैं। प्रस्तुत लेखमें इस तरह का विशलेषण किया गया है जो इससे पहले नहीं हुआ है। प्रकट होने वाले तथ्य संक्षेप में इस प्रकार हैं :-
1. दिल्ली की कुल अपराध दर देशके अन्य भागोंकी दरसे १५० प्रतिशत या उससे अधिक है।
२. महिलाओं के विरूद्ध होने वाले अपराध की सर्वाधिक दर राजस्थान, दिल्ली, मध्य प्रदेश तथा महाराष्ट्र में है ।
३. सबसे कम दर पंजाब में दीख पड़ती है। लेकिन दहेज हत्या में पंजाब आगे है।
४. यह स्पष्ट हो जाता है कि बिहार के पुलिस थानों में महिला-विरोधी कई अपराधों को दर्ज ही नहीं किया जाता ।
५. पश्च्िाम बंगाल में महिला विरोधी अपराध तथा कुल अपराध की दर काफी कम है । लेकिन महिला विरोधी अपराध और कुल अपरोध के अनुपात के विचार से पूरे देश में बंगाल का अनुपात सर्वाधिक है जो कि चौंकाने वाली बात है ।
६. जहां महिला विरोध अपराध तथा कुल अपराध दोनों ही अधिक हैं ऐसे प्रांत हैं मध्य प्रदेश, दिल्ली, महाराष्ट्र, आन्ध्र प्रदेश, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू काश्मिर, मिजोरम तथा आसाम ।

हाल ही में मैंनें एक पढाई आरंभ की है - महिलाओं के विरूद्ध घटने वाले अपराधों के विषय में क्ष् देश के प्रत्येक जिले के पुलिस मुख्यालय से हर महीने एक रिपोर्ट ली जाती है जिसमें उस जिले में दर्ज कराये गये गुनाहों का विवरण दिया जाता है क्ष् यह आँकडे प्रत्येक प्रांत की राजधानी में भेजे जाते हैं क्ष् यहाँ उन्हें एकत्रित करके दिल्ली स्थित राष्ट्रीय क्राइम रेकॉर्ड ब्यूरो के कार्यालय में भेजा जाता है। ब्यूरो उन्हें एकत्रित रूप से संकलित करके एक सालाना रिपोर्ट छापता है।

मेरी पढाई का सिलसिला शुरू होता है इन वार्षिकी रिपोर्ट से। इनमें दिये गये आँकडे जाँचने पर कुछ महत्वपूर्ण तथ्य उभर कर सामने आते हैं क्ष् कुछ तथ्य तो ऐसे हैं जिनका हमें अंदेशा होता है और पढाई के दौरान उनकी पुष्टि होती है। इसके उलटे कुछ ऐसे तथ्य सामने आते हैं जो हमारी पुरानी धारणा को हिला कर हमें चौंका देते हैं।

देश में घट रहे सारे अपराधों का विवरण किस प्रकार है ? ब्यूरो रिपोर्ट में ऐसे २१ प्रकार के अपराधों का विस्तृत विवरण छापा जाता है जो भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत दर्ज किये गये हों। इसी प्रकार महिलाओं के विरूद्ध किये जाने वाले छह प्रकार के अपराधों का विवरण भी छापा जाता है क्ष् अपनी पढाई के लिए मैंने १९९५, १९९६ और १९९७ के आँकडे चुने त्

कुल अपराधों की विवेचना से पता चलता है कि इन तीन वर्षों में मध्य प्रदेश में कुल पांच लाख बियानबे हजार अपराध दर्ज हुए , और महाराष्ट्र में पांच लाख पचपन हजार क्ष् चार लाख वाले राज्य हैं उत्तर प्रदेश, राजस्थान, और तमिलनाडू क्ष् तीन लखिया राज्य हैं गुजरात, बिहार, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश क्ष् केरल और पश्च्िाम बंगाल मे भी दो लाख से अधिक अपराध घटे क्ष् अकेले राजधानी दिल्ली में एक लाख पैंसठ हजार से अधिक अपराध दर्ज हुए जो ओरिसा, आसाम, हरियाना, पंजाब, हिमाचल इत्यादि राज्यों के कुल अपराधों से भी अधिक हैं क्ष् इन अपराधों को लोकसंख्या से तुलना करके देखा जाय तो देशभर में सबसे आगे दिल्ली ही है जहाँ प्रति करोड लोकसंख्या में ४८,५१७ अपराध घटते हैं क्ष् दूसरे स्थान पर राजस्थान हैं जहाँ अपराध की दर प्रति करोड में बत्तीस हजार है क्ष् तीसरे स्थान पर केरल, मध्य प्रदेश, मिजोराम, पांडिचेरी, गुजरात और चंडीगढ हैं जहां की दर पच्चीस से अठाईस हजार है क्ष् इनमें से पांडेचेरी और गुजरात के नाम चौंकाने वाले हैं , खासकर पांडिचेरी जो कि एक छोटा सा द्वीप है, जहाँ शिक्षा की दर अन्य भागों से काफी अच्छी है, जो पुराने जमाने में फ्रेंच संस्कृति के प्रभाव में रहा है और शांतिप्रिय माना जाता है क्ष् मिजोराम में इतने अधिक
अपराध दर होने का कारण है वहाँ चलने वाले जातिगत और टोलीगत अपराध ।

कर्नाटक, गोवा, दमण-दीव, तमिलनाडु, दादरा-नगर हवेली, और महाराष्ट्र में यह दर तेईस हजार से बीस हजार तक घटती दिखाई पडती है क्ष् पंद्रह करोड जनसंख्या वाले उत्तर प्रदेश, दस करोड की जनसंख्या वाले बिहार, और सात-सात करोड की जनसंख्या वाले आंध्र प्रदेश व पश्च्िाम-बंगाल में यह दर पंद्रह हजार से भी कम है जबकि हरियाना, हिमाचल और जम्मू काशमीर जैसे छोटे राज्यों में यह दर अठारह हजार के आस पास है क्ष् उत्तर प्रदेश और बिहार की जैसी अपराधिक छवि बनी हुई है, उसके चलते बिहार और उत्तर प्रदेश के इतने कम आँकडों पर विश्र्वास करना कठिन है क्ष्

एक ओर कुल अपराध हैं, एक ओर अपराध की दर क्ष् कुल अपराधों की संख्या देखकर गृह मंत्रालय तय कर सकता है कि - अपराध को रोकने तथा उनकी जाँच करवाने के लिये वहाँ कितनी कम या अधिक पुलिस लगानी पडेगी क्ष् अपराध की दर एक ऐसा विषय है जो पुलिस और गृह मंत्रालय से अधिक समाज शास्त्र्िायों की पढाई और चिंता का विषय है क्ष् उससे भी कहीं अधिक यह वित्त मंत्रालय योजना आयोग और श्रम मंत्रालय के चिंतन का विषय है क्योंकि बढती हुई अपराध दर का एक प्रमुख कारण होता है बेरोजगारी क्ष्

दिल्ली की अपराध दर देश के बाकी सभी हिस्सों की १५० प्रतिशत अर्थात्‌ डेढ गुनी या उससे काफी अधिक है क्ष् यह निःसंदेह चिन्ता का विषय है क्ष्

दिल्ली के विषय में एक तर्क दिया जा सकता है कि यहाँ की जनसंख्या में हर वर्ष भारी बढोतरी हो रही है जो बाहरी इलाकों से आने वाले लोगों के कारण है, और उन्हीं की वजह से अपराध बढ रहे हैं क्ष् लेकिन यही बात मुंबई और कोलकाता से तुलना करके देखी जा सकती है। वहाँ भी देश के सभी भागों से रोजगार की तलाश में लोग आ जुटते हैं क्ष् जनसंख्या वहाँ भी बेतहाशा बढ रहीं है क्ष् फिर भी दिल्ली का अपराध दर उनसे चार-पांच गुना अधिक है क्ष् मुझे लगता है कि इसका असल कारण कुछ और है क्ष् मुंबई और कोलकाता को मेहनत वालों का शहर माना जा सकता है क्ष् जबकि दिल्ली मूलतः तिकडमबाजी वाला शहर लगता है क्ष् यहाँ के अपराधों की गंगोत्री है काला धन और काले धन की गंगोत्री है सत्ता के गलियारों में होने वाली यंत्रणा-मंत्रणा क्ष् ऐसा नहीं कि वैसी यंत्रणा-मंत्रणा मुंबई या कोलकाता में न होती हो क्ष् वहाँ भी एनरॉन है, पिअरलेस है और बम विस्फोट भी हैं क्ष् लेकिन एक छोटे से तबके को छोड दिया जाय तो बाकी लोग अधिक से अधिक मेहनत करने में जुटे मिलेंगे क्ष् मध्यवर्गी की मानसिकता काम की ओर अधिक और तिकडमबाजी की ओर कम है जबकि दिल्ली में मध्यवर्ग भी सत्ता के गलियारों के काफी करीब और उससे प्रभावित है।

कुल अपराधों की दर के साथ महिलाओं के प्रति घटने वाले अपराध दर की तुलना करने पर क्या देखने को मिलता है? कि बंगाल, जो कि कई मामलों में अच्छाइयों का प्रतीक है, इस मामले में चौंका देता है। बंगाल, जहाँ शिक्षा की दर अधिक है, महिला के प्रति आदर-सम्मान की परंपरा अधिक मुखर है, जहाँ राजा राममोहन रॉय, रामकृष्ण , विवेकानंद और रवींद्रनाथ टैगोर जैसी हस्तियों ने महिला सम्मान को समाज में प्रस्थापित किया, जहाँ कुल अपराधों की संख्या व दर भी काफी कम है,साथ ही औरतों के प्रति घट रहे अपराध की अन्य राज्यों की तुलना में काफी कम हैं, बेरोजगारी भी औरों की तुलना में कम है, उसी बंगाल में औरतों के प्रति घट रहे छः अपराधों की दर कुल अपराधों की दर के अनुपात में सर्वाधिक अर्थात्‌ ९.९ प्रतिशत है। इसके बाद आते हैं त्रिपुरा ८.८ , महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश ८.३ तथा आसाम ८.१ प्रतिशत क्ष् अर्थात्‌ यहाँ घट रहे कुल अपराधों की तुलना में महिलाओं के प्रति अधिक तेजी से अपराध घट रहे हैं क्ष् आसाम और त्रिपुरा में इस तथ्य के लिये वहाँ की फिलहाल चल रही परिस्थिती को दोषी बताया जा सकता है लेकिन बंगाल, महाराष्ट्र और आंध्र में क्या कारण हैं ?

बिहार के आकड़ें बताते हैं कि महिला-विरोधी छः अपराधों के ५७ जिलों के तीन वर्षों के रिपोर्ट में कुल १०२६ में से ४६० खानों में शून्य लिखा हुआ है। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि बिहार के पुलिस थानों में महिला-विरोधी कई अपराधों को दर्ज ही नहीं किया जाता । उत्तर प्रदेश के भी ६८ जिलों के १२२४ में से २०४ खानों में शून्य दर्ज हुआ है ।

केवल महिलाओं के प्रति घट रहे अपराधों में राजस्थान की दर सर्वाधिक अर्थात्‌ प्रति एक करोड जनसंख्या में २१०६ है जोकि मध्य प्रदेश में २०८९, दिल्ली में २००० हैं और महाराष्ट्र में १७५२ है क्ष् बाकी सभी राज्यों में
यह चौदह सौ से कम है क्ष्

अरुणाचल के सियांग जिलेमें बलात्कार की दर सबसे अधिक अर्थात्‌ ८७७ प्रति करोड है। हिमाचल प्रदेश के किन्नौर जिलेमें बलात्कार की दर ७७३ है जो देशभरमें पाँचवे स्थान पर है। पंजाबमें अन्य सभी तरहके अपराध कम होते हुए भी दहेज हत्याओंकी दर में पंजाब पाँचवे स्थान पर है। हिमाचल के विभिन्न जिलोंमें बलात्कार तथा दहेज हत्या की दर इस प्रकार थी :


dist96 IR95-97 IDD95-97
HAMIRPUR 93 27
UNA 177 24
BILASPUR 250 20
KANGRA 127 20
MANDI 157 17
SHIMLA 330 10
SIRMUR 359 7
SOLAN 310 7
KINNAUR 773 0
KULLU 278 0
CHAMBA 258 0
LAHAUL-SPITI 0 0

स्वतंत्रता के पचास वर्ष पूरे होने के बाद देश अब संक्रमण काल से गुजर रहा है क्ष् स्वतंत्रता आंदोलन के कई अच्छे पहलू अब लुप्त हो चुके हैं क्ष् साथ ही अंगरेजी राज के भी कई अच्छे पहलू लुप्त हो चुके हैं क्ष् उनमें से एक था चरित्र जो स्वतंत्रता आंदोलन का एक आवश्यक अंग था और दूसरा था अपराध से निबटने की कार्यक्षमता जो कि अंगरेजी राजकी अच्छाई कही जा सकती है क्ष् अठारहवीं व उन्नीसवीं सदि का इतिहास ओर साहित्य (उदाहरण- आनन्द मठ जैसे उपन्यास )पढने पर लगता है कि लोगों ने इस बात को स्वीकार कर लिया था कि अंगरेज के आने से पहले देश में ठग-पिंडारियों का काफी बोलबाला था क्ष् अंगरेज आने से एक सुव्यवस्थित एवं डिसिप्लिन्ड पुलिस फोर्स का गठन हुआ जो ठग - पिंडारियों के अपराध रोकने में और लोगों को राहत दिलाने में सफल रहा क्ष् आज फिर ऐसा लग रहा है मानों देश में ठग-पिंडारियों का राज फिर से आ रहा है और सरकारी पुलिस की कार्यक्षमता पर प्रश्नचिन्ह लगा हुआ है क्ष्

इसका असर पडता है, अपराध दर्ज होने या न होने पर क्ष् अक्सर महिला-समस्या के क्षेत्र में काम करने वाली संस्थाओं या महिला आयोगों के अनुभव में यह पाया जाता है कि पुलिस
अपराध दर्ज ही नहीं करती क्ष् नॅशनल क्राइम रिपोर्ट ब्यूरो के वार्षिक रिपोर्टों में यहाँ तक लिखा होता है कि बिहार के पुलिस विभाग से उन्हें रिपोर्ट ही नहीं भेजे जाते क्ष् स्त्र्िायों के प्रति किये
जाने वाले बलात्कार की घटना में या दहेज हत्या की घटना में यदि पुलिस रपट ही दर्ज नहीं कराये तो गुनाहों की संख्या कम ही दिखेगी क्ष्

जहाँ कहीं गुनाह की दर अधिक है, वह तो चिंता का विषय है ही क्ष् परन्तु जहाँ कहीं अपराधों का दर कम है, वहाँ भी इस निश्च्िान्तता में नहीं रहा जा सकता क्ष् वहाँ जाँच करनी आवश्यक है कि क्या पुलिस सारे अपराधों को दर्ज कर छानबीन कर कोर्ट में पेश करती है या कई अपराधों की खबर को बिना दर्ज किये ही खारिज कर देती है क्ष् यह आत्मपरिक्षण अब आवश्यक हो गया है क्ष्

सारणी 1 में देश के सभी प्रान्तों में पिछले तीन वर्षों में दर्ज किये गये कुल अपराध तथा महिलाओं के प्रति घटने वाले छ अपराधों की तुलना की गई है । चित्र 1 में यही बात देश के नक्शे पर देखी जा सकती है ।

पंजाब में कुल अपराध तथा महिला- विरोधी अपराध दोनों की दर कम होने के बावजूद दहेज हत्या की दर काफी अधिक है। इस मामले में सबसे आगे हैं - दिल्ली १२८, हरियाना १२५, उत्तर प्रदेश १२३, पंजाब ७५ तथा राजस्थान ७३। पंजाब में सबसे अधिक स्त्री- भ्रूण-हत्या का शायद यह भी एक कारण है।

चित्र २ में सभी प्रान्तों में घटने वाले कुल अपराध तथा महिला विरोधी अपराध का ग्राफ दर्शाया गया है। जहां दोनों ही अपराध अधिक हैं ऐसे प्रांत हैं मध्य प्रदेश, दिल्ली, महाराष्ट्र, आन्ध्र प्रदेश, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू काश्मिर, मिजोरम तथा आसाम । आने वाले वर्षों में इन राज्यों में कानून और सुव्यवस्था बनाये रखने के लिये विशेष प्रयास करने होंगे ।

उन आँकडों पर नजर डालना भी आवश्यक है जो अपराधी को सजा दिलवाने के मुद्दे से संबंधित है क्ष् आज देश भर के न्यायालयों में एक करोड से भी अधिक मामले सुनवाई के लिये प्रलंबित हैं। उनका प्रलंबन काल पंद्रह वर्ष भी हो सकता है और पंद्रह महीने भी क्ष् इतनी देर के बाद अपराधी को सजा मिल भी जाये तो उससे क्या हासिल ? खास कर जिस बेकसूर पर जुल्म हुआ हो, उसका मानसिक संतोष और समाज की उपयोगिता में उसका विश्र्वास बनाये रखना हो तो देर से मिलने वाले न्याय का क्या उपयोग ? अन्य विकसित देशों की विकसन क्षमता इसी बात से बढी है कि वहाँ अपराधी के लिये दंड-व्यवस्था तुरंत है ताकि सारा समाज चैन की सांस ले सके क्ष् हमारे देश में हम भूल जाते हैं कि अपराधी को सजा दिलाने में देर करके हम पूरे समाज का खतरा बढा रहे है क्ष् इस देर के लिये प्रशासन या न्यायपालिका के जो सदस्य जिम्मेदार हैं , वे सोचते हैं कि वे स्वयम्‌ तो पूर्ण रूपेण सुरक्षित हैं क्ष्

देखें कि देश के सर्वोच्च न्यायालय या अन्य उच्च न्यायालयों में इन प्रलंबित केसों के लिये क्या किया जाता है क्ष् सर्वोच्च न्यायालय, उच्च न्यायालय और सभी जिला न्यायालयों में एक रजिस्ट्रार की पोस्ट होती है जो जज की ही रैंक में होती है क्ष् इनका काम है न्यायालय में दाखिल होने वाले केसों की सुनवाई की तारीख लगाना और कुल प्रलंबित केसों पर नजर रखना क्ष् लेकिन ये अधिकारी प्रलंबित केसों का मॉनिटरिंग कैसे करते हैं ? क्या इनकी भी
कोई मासिक या वार्षिक रिपोर्ट बनाकर छापी जाती है और जनता को बताई जाती है ? जी, नहीं । क्या इन रिपोर्टों को सरकार के न्याय व विधी विभाग के पास भेजा जाता है - जी हां, लेकिन जाहिर करने के लिये नहीं, केवल अंतर्गत आवश्यकता के अनुसार संदर्भ के लिये । क्या इन्हें संसद या विधान सभाओं के सम्मुख रखा जाना है ? जी नहीं । क्या इन्हें विधी महाविद्यालयों में चर्चा के लिये भेजा जाता है - नहीं । तो फिर इस मॉनिटरिंग की पद्धति में सुधार होने का क्या तरीका हो सकता है ?

जनता को यदि लगातार पता चलता रहे कि कितने केस कितने दिनों तक प्रलंबित रहते हैं, तभी उनके शीघ्र निपटारे का कोई उपाय हो सकता है । तभी कोई अपनी जिम्मेदारी मानेगा और कोई उपाय निकलेगा ।

हमारी न्याय प्रक्रिया की पूरी व्यवस्था में कई नितान्त मौलिक परिवर्तन आवश्यक हैं जिनकी चर्चा एक स्वतंत्र लेख का विषय है।
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मासिक हिमप्रस्थ, सिमला में प्रकाशित

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