How do we define the women's empowerment? To my mind fearlessness, dignity and awareness are the key words. Can women, decide, with dignity and without any fear, their own goals and have the freedom and capability to act towards them? Read More
published in yojana (planning commission, Delhi) august 2001
शनिवार, 17 मई 2008
Crime against Women: Bihar profile
Any reference to the state of Bihar evokes peculiar reactions. Reports are read very often about the high number of crimes committed in one or other place in Bihar. These include the instances of groups killing each other, groups keeping their own private armies, groups perpetrating gang rapes and so on, and yet the number of crimes as reported from Bihar are quite low as compared to the number of crimes reported from other districts in the country.
Discounting the possible gap in reporting, the study of the crime of rapes has been attempted as a starting point. Here again, one is not only required to discount the non-reporting of individual instances of rape or gang-rape, but one is acutely aware that even NCRB does not ask for separate reports of gang-rape although many instances are reported heavily in newspapers from Bihar. A recommendation can be made at the outset that NCRB must start keeping a separate record of all gang rapes, mass rapes or rapes by one community on the other as a result of communal disharmony and revenge psyche.
Read More at
http://www.geocities.com/leenameh/12Dmaha/RpBihar12.htm
http://www.geocities.com/leenameh/12Dmaha/RpBihar3.htm
http://www.geocities.com/leenameh/12Dmaha/RpBihar4.htm
http://www.geocities.com/leenameh/12Dmaha/RpBihar5.htm
Discounting the possible gap in reporting, the study of the crime of rapes has been attempted as a starting point. Here again, one is not only required to discount the non-reporting of individual instances of rape or gang-rape, but one is acutely aware that even NCRB does not ask for separate reports of gang-rape although many instances are reported heavily in newspapers from Bihar. A recommendation can be made at the outset that NCRB must start keeping a separate record of all gang rapes, mass rapes or rapes by one community on the other as a result of communal disharmony and revenge psyche.
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http://www.geocities.com/leenameh/12Dmaha/RpBihar12.htm
http://www.geocities.com/leenameh/12Dmaha/RpBihar3.htm
http://www.geocities.com/leenameh/12Dmaha/RpBihar4.htm
http://www.geocities.com/leenameh/12Dmaha/RpBihar5.htm
Maharashtra Profile on Crime Against Women: DOWRY
Dowry can be treated as a stigma on the Indian society. A girl leaves her parental house around the age of 20 years and accepts the matrimonial house as her home where she would spend the rest of life. Her well-being, sense of security, confidence and empowerment, everything depends on the treatment that she gets during the initial period immediately after the marriage. The menace of dowry torture increased so much during the last twenty years that now it has become a threat to the sense of well-being of the newly married girl. After a large number of cases of dowry torture and dowry deaths came to be reported, the Dowry Prohibition Act which was passed by the government of India in _____ year was modified and made further stringent. Now there is a provision that if any girl dies within the first seven years of marriage, then it shall be presumed that there was an element of dowry harassment and torture.
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Maharashtra Profile on Crime Against Women: Rape
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According to the crime statistics published by National Crime Records Bureau, more than 15,000 women get raped in one year. The investigation, presentation before the courts and the actual justice delivery are processes that are enormously delayed. According to the Crime Report of 1998, as many as 5793 cases were pending with the police for investigation on 1.1.1999. Those pending in the courts on that date were 48685. It is further noteworthy that out of nearly 10000 rape cases decided by the courts in 1998 only 2577 were convicted. This means that compared with pending cases the conviction rate is as low as 5 percent. The lower punishment even in convicted cases is a matter of further worry.
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रविवार, 11 मई 2008
राजस्थान -- जनमने और पढने का हक + शिशु-लिंग-अनुपात
राजस्थान -- जनमने और पढने का हक
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राजस्थानः
जनमने और पढ़ने का हक
-- लीना
मेहेंदले,
भा.
प्र.
से.
राजस्थान,
जिसका
वर्णन कई प्रकार से मन में
पैठा होता है -
मसलन
शूरवीरों का देश,
मरूभूमि
का देश,
ऊंटों
का देश,
कम पानी
वाला सूखा प्रदेश,
अरावली
पर्वत का देश,
राणा
सांगा और राणा प्रताप का देश
।
वैसा
ही जैसा महारानी कर्णवती का
देश जिसने राणा सांगा की मौत
के बाद भी चित्तौड़ की कमान को
संभाले रखा या पन्ना धाय का
देश जिसने अपने बेटे का बलिदान
देकर राजपुत्र को बचा लिया
या मीरा का देश जिसके भक्ति
रस ने पूरे भारत को सराबोर कर
दिया या हाडा रानी का देश जिसने
पति की युद्ध-विमुखता
को रोकने के लिए अपना सिर काट
दिया या महारानी पदिमनी का
देश जिसने खिल.जी
के हाथों अपनी आबरू बचाने के
लिए कई सहेलियों के साथ जोहर
किया ।
लेकिन
यही नारी और पुरूष जो घर के
बाहर अपनी मिसाल कायम कर सकते
हैं,
घर के
अंदर क्या करते हैं ?
कैसी-कैसी
अमानवीय प्रथाओं को पालते
हैं ?
वे तलवार
लेकर शत्रु पर पिल पड़ सकते हैं
लेकिन क्या वे दिल व दिमाग में
विचार लेकर कुप्रथाओं से लड़
नहीं सकते,
उन्हें
बंद नहीं करवा सकते ?
सारे
देश में राजस्थान ही एक ऐसा
प्रांत है जहां बालिका हत्या
न केवल एक व्यक्ति या एक परिवार
के सोच का विषय है,
बल्कि
एक पूरे समूह के सोच का विषय
है । यहां गांव के गांव हैं जो
किसी के घर में बारात का न आना
अपनी इज्जात और शान समझते हैं
। यदि किसी के घर बच्ची पैदा
हो रही हो,
तो पूरे
गांव को अपनी इज्जात पर ऐसा
खतरा महसूस होता है जो कि किसी
भी आर्थिक कारण से नितान्त
भिन्न है । क्या इन गांवों में
आल्हा गाने वाले नहीं होते ?
क्या वे
नहीं सोचते कि भले ही उनके
गांव में बारात न आने का दुराभिमान
हो लेकिन वहां कभी किसी मीरा
या कर्णवती या पदिमनी या पन्ना
या हाडा रानी की जन्मस्थली
होने का गौरव भी नहीं होगा ।
क्या किसी गांव के कथा-वाचक
को,
साधु
संतों को,
गांव के
मुखियाओं को या महिला सरपंचों
को यह बात अभी तक नहीं चुभी है
?
क्यों
आज तक लोकगीतों में भी स्त्री
के अधिकार की कहानियां नहीं
रची जातीं ?
स्त्री
अधिकार की बात करने बैठो तो
मुख्यतः इन्हें यों गिनाया
जा सकता -
- पैदा
होने का हक और साथ ही अच्छे
पोषण तथा स्वास्थ्य का हक ।
- बीमार
पड़ने पर इलाज का हक ।
- अच्छी
शिक्षा का हक जो एक चिंतनशील,
कर्मठ
जीवन की नींव बन सके ।
- रो.जी-रोटी
कमाने का हक ।
- अपराधों
से सुरक्षा का हक ।
- संपत्त्िा
जुटाने तथा संपत्त्िा पर
स्वामित्व का हक ।
- देश
की राजकीय प्रणाली में नेतृत्व
करने का हक ।
- देश
व समाज के विकास में योगदान
का हक ।
- भ्रमण
द्वारा अपना व्यक्तिगत तथा
ज्ञान निखारने का हक ।
- परिवार
बनाने व पोसने में बराबरी का
हक ।
इन
अधिकारों के संदर्भ में राजस्थान
की महिलाओं की स्थिति परखने
पर क्या चित्र मिलता है?
सन्
२००१ की जनगणना के आंकड़े हाल
ही में प्रकाशित हुए हैं ।
देशभर में स्त्री-पुरूषों
का व्यस्त अनुपात तो पहले से
ही चिंता का विषय था । नई जनगणना
में उससे भी अधिक गंभीर और
भयावह चिंता का विषय हो गया
है बच्चों में लड़की-लड़कों
का व्यस्त अनुपात । जहां १९९७
की
जनगणना में
प्रति एक हजार पुरूषों के पीछे
केवल ९२७ स्त्र्िायां थीं,
वहीं छः
वर्ष से कम आयु के बच्चों में
प्रति एक ह.जार
लड़कों के पीछे ९४५ लड़कियां
थीं जो कि काले बादलों की सुनहरी
किनार का संतोष देता था । लेकिन
सन्
२००१ की गणना के बाद वह भी छिन
गया । अब जहां कुल स्त्री-पुरूष
अनुपात ९३२ हो गया है,
वहीं छः
से कम आयु में बालिका-बालक
अनुपात घटकर ९२७ हो गया है ।
इससे साफ जाहिर है कि देशभर
में शिशु-बालिकाओं
की हत्या या स्त्री भ्रूण
हत्याएं बड़ी ते.जी
से घट रही हैं और यदि जल्दी ही
इस घटनाक्रम को नहीं रोका गया
तो ऐसा व्यस्त अनुपात पूरे
समाज को बढ़ते अपराध के भंवर
में धकेल देगा ।
इस
पृष्ठभूमि में राजस्थान का
योगदान कितना है ?
शिशु-लिंग-अनुपात
का औसत पूरे देश के लिए भले ही
९२७ हो,
लेकिन
राजस्थान के विभिन्न जिलों
में यह काफी कम है जिसे संलग्न
सारणी में देखा जा सकता है ।
कुल ३२ जिलों से २४ जिलों में
शिशु-लिंग-अनुपात
९२७ से कम है । केवल चित्तौड़गढ़,
उदयपुर,
झालावार,
राजसमंद,
बांसवाड़ा,
भिलवारा,
पाली और
डुंगरपुर में यह थोड़ा अधिक
है । सबसे कम अनुपात है ८५२ जो
गंगानगर में है । इसके अलावा
हनुमानगढ़,
झुनझुन,
जयपुर,
अलवर,
सीकर,
दौसा,
धौलपुर,
भरतपुर,
सवाई
माधोपुर और जैसलमेर में
शिशु-लिंग-अनुपात
९०० से कम है । यद्यपि यह मानना
पड़ेगा कि राजस्थान की सीमा
से लगे पंजाब,
हरियाणा
और गुजरात राज्यों में स्थिति
इससे कहीं अधिक विकराल है,
फिर भी
यदि जिला स्तर से नीचे उतरकर
तहसील या ग्राम पंचायतों या
गावों तक के आंकड़े देखें जाएं
तो राजस्थान में कई ऐसे गांव
के गांव मिल जायेंगे जहां यह
अनुपात अत्यंत कम है ।
स्त्री-शिशु
हत्या के लिए कई बार ऐसे जघन्य
प्रयोग किए जाते हैं जिनके
आगे कंस की दुष्टता भी फीकी
पड़ जाए -
मसलन
नवजात लड़की के मुंह पर तकिया
रखकर या उसे बक्से में बंद कर
उसकी सांस रूकवाना या उसके
मुंह में धतूरे के बीज या चावल
के कच्चे दाने डालकर अन्न-नलिका
तथा श्र्वास नलिका को बंद कर
देना या उसकी देह पर चारपाई
के पांव रखकर उस पर बैठ जाना
इत्यादि । यह काम दाइयों,
बड़ी-बूढ़ियों
और मांओं के द्वारा उन सबके
समक्ष किया जाता था और आने
वाली दाई को भारी विदायी भी
दी जाती । आज भी राजस्थान में
कई जगह यह कारमाने रुके नहीं
हैं । भले ही भारतीय दंड संहिता
की धारा में ऐसी शिशु हत्या
के लिए कड़ी स.जा
का प्रावधान है,
फिर भी
ऐसी हत्याएं दर्ज ही नहीं की
जाती,
इसलिए
किसी को दंडित भी नहीं किया
जाता ।
इस
उदाहरण के द्वारा जो लोग दुहाई
देते हैं कि औरत ही औरत की
दुश्मन है उनका दावा मैं गलत
मानती हूं,
इसलिए
कि घर अंदर शिशु हत्या का काम
पूरा करने वाली ये तमाम औरतें
बाहर बैठे हुए पुरूषों के दबाव
और डर के कारण यह करती हैं ।
जब भंवरी देवी जैसी कोई औरत
किसी दूसरी औरत-जात
को सामाजिक कुरीतियों से बचाना
चाहती है तो अंतिमतः गांव के
पुरूष ही उसे जघन्य 'स.जा'
देकर
उसका विद्रोह कुचलने का कदम
उठाते हैं । यह उदाहरण भी इसी
राजस्थान की भूमि पर देखा जा
सकता है ।
स्त्री-शिशु-हत्या
की परंपरा में एक और कड़ी जड़ती
है स्त्री-भ्रूण-हत्या
से जो आज सारे देश पर ही संकट
के रूप में छाई है । यहां दो-दो
डॉक्टर इस काम को संपन्न करते
हैं -
एक तो वे
जो सोनोग्राफी टेस्ट करते
हैं और बता देते हैं कि किसी
महिला को गर्भ है या नहीं और
गर्भस्थ शिशु स्त्री है या
पुरूष । दूसरा डॉक्टर वह जो
इस भ्रूण को डॉक्टरी उपायों
से अर्थात्
कयूरेटिंग से निकाल फेंकता
है ।
सरकार
के दो नये कानूनों -
एम.टी.पी.
एक्ट और
पी.एन.डी.टी
एक्ट के अंतर्गत प्रावधान है
कि प्रत्येक जिले में एक सक्षम
अधिकारी की घोषणा की जानी
चाहिए जिसके पास ऐसे दोनों
तरह के डॉक्टरों का रजिस्ट्रेशन
होगा । ऐसे रजिस्ट्रेशन का
अच्छा उपयोग किया जा सकता है।
जनगणना
आयोग की अपनी सीमाएं हैं,
जिस कारण
वे कुछ ही आंकड़े प्रकाशित कर
पाते हैं,
कुछ नहीं
कर पाते । कुछ तो शायद देखे भी
न जाते हों । लेकिन नीति-निर्धारकों,
मसलन
योजना आयोग या सरकार के महिला
विभाग को इन आंकड़ों के प्रति
जल्दी ही चेतना होगा । जिलावार
आंकड़ो से संतोष कर लेने की
बजाय जनगणना आयोग से मांग करनी
पड़ेगी कि राजस्थान के
शिशु-लिंग-अनुपात
के आंकड़े गांववार जारी किए
जाएं ताकि पता चले कि किन गांवों
में सबसे अधिक पहल करना आवश्यक
है ।
आयोग
को भी ऐसे गांवों के नाम प्रकाशित
करने चाहियें ताकि देश की
प्रबुद्ध जनता और योजनाकारों
का ध्यान इस ओर अधिक कारगर रूप
में खींचा जा सके। जिन गांवों
में यह आंकड़े ७०० से कम पाए
जाएं वहां के सारे सोनोग्राफी
क्लिनिक्स एवं गायनोकॉलॉजिस्ट
अस्पतालों तथा दाइयों पर अधिक
सतर्कता से निगरानी रखना संभव
होगा । जिन गाँवों में स्त्री
शिशु-लिंग
अनुपात अत्यंत कम है,
वहाँ के
सक्षम अधिकारी द्वारा कुछ
कारगर कदम उठाए जा सकते हैं
।
स्त्री
शिक्षा का मापदंड लगाने पर
पाया जाता है कि पिछले दशक में
राजस्थान ने प्रगति की है जिस
कारण से स्त्री साक्षरता का
औसत प्रमाण बढ़ गया है । फिर भी
कई जिले हैं जहां अभी तक यह ३०
प्रतिशत से कम है । वे हैं -
जालोर,
जैसलमेर,
सवाई
माधोपुर,
भिलवाड़ा,
बांसवाड़ा,
टोंक व
डुंगरपुर । जालोर,
और जैसलमेर
जिलों में स्त्री शिक्षा का
अनुपात १० से कम था,
इसलिए
वहाँ के प्रयत्नों की प्रशंसा
करनी पड़ेगी ।
फिर
भी यह कहना आवश्यक है कि केवल
साक्षरता और चिंतनशील दिमाग
देने वाली शिक्षा में काफी
अंतर है । साथ ही यह भी देखना
आवश्यक है कि शिक्षा का प्रमाण
बढ़ने पर औरतों को रो.जी-रोटी
कमाने के कितने अवसर मिल रहे
हैं और अवसर का फायदा उठाने
लायक माहौल है या नहीं । माहौल
के लिए अपराधों से सुरक्षा
का हक अत्यंत आवश्यक है । अत
इस संबंध में कुछ कहना आवश्यक
है।
कुछ
अपराध ऐसे हैं जो केवल स्त्री
जाति के विरूद्ध ही किए जाते
हैं और उनमें सबसे घृणित हैं
बलात्कार तथा दहेज हत्या ।
राजस्थान में प्रतिवर्ष करीब
....
बलात्कार
की घटनाएं होती हैं और दहेज
हत्या की घटनाएं । सारणी में
इन दोनों अपराधों की दर है
जिसके लिए १९९५-९९
के दौरान घटे अपराध के आंकड़े
और १९९६ की जनसंख्या का आधार
लिया गया है ।
सारणी
से देखा जा सकता है कि झालावार
जैसे जिले में बलात्कार की
दर प्रति करोड़ जनसंख्या में
८०० से अधिक है । इस मामले में
देश के सबसे बुरे पचास जिलों
की सूची में झालावार,
बांसवारा
तथा बारन का नाम शामिल है ।
इसी प्रकार दहेज हत्या की
अधिकतम दर के लिए देशभर के
पचास जिलों की सूची में धौलपुर
का नाम शामिल है ।
यहां
यह देखना उपयुक्त होगा कि
विभिन्न जिलों में स्त्री-पुरूष
लिंग अनुपात,
स्त्री-शिक्षा
तथा बलात्कार और दहेज-हत्या
जैसे अपराधों का क्या संबंध
है । चित्र क्र.१
में सभी जिलों में शिशु-लिंग
अनुपात के साथ दहेज-हत्या
की औसत दर को अंकित किया गया
है । इसमें स्पष्ट देखा जा
सकता है कि जिन जिलों में
शिशु-लिंग-अनुपात
अधिक है,
वहां
दहेज-हत्या
की दर कम है । राजस्थान की तमाम
महिलाओं और स्वयंसेवी संस्थाओं
को तत्काल चेत जाना चाहिए कि
जहां स्त्री-भ्रूण-हत्याएं
कम होंगी और शिशु-लिंग
अनुपात अधिक होगा वहां
दहेज-हत्याएं
भी कम होगी । बलात्कार की बाबत
भी साधारण चित्र यही है,
केवल
दक्षिण राजस्थान के चार जिले
डुंगरपुर,
भिलवारा,
उदयपुर
और राजसमंद में इसके ठीक उल्टा
ट्रेंड है अतः वहां के कारणों
का अलग अध्ययन आवश्यक है ।
इसी
प्रकार चित्र २ में सभी जिलों
में स्त्री-साक्षरता
की दर के साथ बलात्कार के अपराध
की
दर को अंकित
किया है । इसमें भी देखा जा
सकता है कि साधारणतया जिस जिले
में स्त्री-साक्षरता
का प्रमाण अधिक है,
वहां
बलात्कार की औसत दर कम है ।
केवल कुछ जिले इस ट्रेंड से
अलग हैं और वहां बलात्कार की
दर अत्यधिक है जैसे कोटा ४८३,
गंगानगर
३६६,
झालावार
८३२ या बारन ६४२ ।
हालाँकि
इन दृष्टान्तों को किसी ठोस
सिद्धान्त का स्वरूप नहीं
दिया जा सकता क्योंकि हर जिले
का भौगोलिक-आर्थिक
और सांस्कृतिक परिवेश अलग
है,
फिर भी
ये दो चित्र स्पष्ट रूप से
दिशा-निर्देश
अवश्य करते हैं कि यदि स्त्री-शिशु
या स्त्री भ्रूण हत्या को रोका
जाए और स्त्री-शिक्षा
को बढ़ाया जाए तो स्त्र्िायों
के प्रति होने वाले अपराधों
को घटाया जा सकता है ।
चित्र
३ का अध्ययन विशेष रूप से आवश्यक
है क्योंकि यह एक दुश्च्िाह्न
का संकेत देता है । इसमें सभी
जिलों के सन्
२००१के शिशु लिंग-अनुपात
को स्त्री-शिक्षा
की दर के साथ अंकित किया है ।
यहां देखा जा सकता है कि जिन
जिलों में
स्त्री-शिक्षा
की दर बढ़ी है वहां शिशु-लिंग
अनुपात घटा है अर्थात्
स्त्री-भ्रूण
हत्याएं अधिक हो रही हैं । यह
वास्तव में
चिंता का विषय है कि जहां एक
ओर पढ़ाई का हक मिल रहा है,
वहां
जनमने का हक छिन रहा है । इससे
जाहिर है कि
हमारी शिक्षा पद्धति और विकास
की नीतियाँ अभी भी हमें असली
शिक्षा,
असली
स्वतंत्रता,
असली
चरित्र-विकास
की ओर नहीं ले जा रही हैं ।
राजस्थान
की महिलाओं ने पिछले दो-तीन
वर्षों में कई उपलब्धियां
हासिल की हैं -
सहकारिता
आंदोलन चलाया है,
पानी
बचाने के कार्यक्रम चलाए हैं,
शिक्षा
अभियान चलाए हैं,
अमरीकी
अध्यक्ष को भी प्रभावित कर
दिया है । उनके लिए और हम सभी
के लिए यह चुनौती है कि हमें
मिलने वाला एक हक दूसरे हक की
कीमत पर न हो।
(नीचे
चार्ट देखें)
dist fmr6 % f-lit
R/Rp R/dd
Ajmer 923 41 154 53
Alwar 888 36 172 119
Banswara 972 22 789
38
Baran 918 34 642 56
Barmer 922 34 89
18
Bharatpur 875 35
282 124
Bhilwara 951 28 293
36
Bikaner 915 34 222
76
Bundi 908 31 540 50
Chittaurgarh 927 30 404
37
Churu 912 44 143 66
Dausa 900 35 175 79
Dhaulpur 859 33
234 217
Dungarpur 963 25 312
40
Ganganagar 852 44
366 163
Hanumangarh 873 44
241 119
Jaipur 897 47 135
78
Jaisalmer 867 25 93
57
Jalor 924 22 73
49
Jhalawar 929 33 832
54
Jhunjhunun 867 50 89
89
Jodhpur 920 32 120
86
Karauli 876 36 186
Kota 902 52 483 88
Nagaur 920 33 106
43
Pali 927 30 146 54
Rajsamand 935 31 193
44
Sawai Madhopur 900 29 186
76
Sikar 882 47 71
74
Sirohi 918 30 223
46
Tonk 922 27 234 37
-------------------------------------------------------------------------
राजस्थान में
शिशु-लिंग-अनुपात
शिशु-लिंग-अनुपात
का औसत पूरे देश के लिए भले ही
९२७ हो,
लेकिन
राजस्थान के विभिन्न जिलों
में यह काफी कम है जिसे सारणी
क्र.१
में देखा जा सकता है । कुल ३२
जिलों से २४ जिलों में
शिशु-लिंग-अनुपात
९२७ से कम है । केवल चित्तौड़गढ़,
उदयपुर,
झालावार,
राजसमंद,
बांसवाड़ा,
भिलवारा,
पाली और
डुंगरपुर में यह थोड़ा अधिक
है । सबसे कम अनुपात है ८५२ जो
गंगानगर में है । इसके अलावा
हनुमानगढ़,
झुनझुन,
जयपुर,
अलवर,
सीकर,
दौसा,
धौलपुर,
भरतपुर,
सवाई
माधोपुर और जैसलमेर में
शिशु-लिंग-अनुपात
९०० से कम है । यद्यपि यह मानना
पड़ेगा कि राजस्थान की सीमा
से लगे पंजाब,
हरियाणा
और गुजरात राज्यों में स्थिति
इससे कहीं अधिक विकराल है,
फिर भी
यदि जिला स्तर से नीचे उतरकर
तहसील या ग्राम पंचायतों या
गावों तक के आंकड़े देखें जाएं
तो कई ऐसे गांव के गांव मिल
जायेंगे जहां यह अनुपात अत्यंत
कम है ।
जनगणना
आयोग की अपनी मर्यादा है सीमाएं
हैं,
जिस कारण
वे कुछ ही आंकड़े प्रकाशित कर
पाते हैं,
कुछ नहीं
कर पाते । कुछ तो शायद देखे भी
न जाते हों । लेकिन नीति-निर्धारकों,
मसलन
योजना आयोग या सरकार के महिला
विभाग को इन आंकड़ों के प्रति
जल्दी ही चेतना होगा । जिलावार
आंकड़ो से संतोष कर लेने की
बजाय जनगणना आयोग से मांग करनी
पड़ेगी कि राजस्थान के
शिशु-लिंग-अनुपात
के आंकड़े गांववार जारी किए
जाएं ताकि पता चले कि किन गांवों
में सबसे अधिक पहल करना आवश्यक
है । जिन गांवों में यह आंकड़े
७०० से कम पाए जाएं वहां के
सारे सोनोग्राफी क्लिनिक्स
एवं गायनोकॉलॉजिस्ट अस्पतालों
पर कड़ी निगरानी रखना आवश्यक
होगा ।
जनगणना
आयोग को भी ऐसे गांवों के नाम
प्रकाशित करने चाहियें ताकि
देश की प्रबुद्ध जनता और
योजनाकारों का ध्यान इस ओर
अधिक कारगर रूप में खींचा जा
सके । फिर यह संभव होगा कि उन
गांवों के तमाम सोनोग्राफी
क्लिनिक्स,
गायनॉकॉलोजी
सेंटर्स तथा दाइयों पर अधिक
सतर्कता से निगरानी रखी जाए
।
स्त्री-शिशु
हत्या के लिए कई बार ऐसे जघन्य
प्रयोग किए जाते हैं जिनके
आगे कंस की दुष्टता भी फीकी
पड़ जाए -
मसलन
नवजात लड़की के मुंह पर तकिया
रखकर या उसे बक्से में बंद कर
उसकी
सांस रूकवाना
या उसके मुंह में धतूरे के बीज
या चावल के कच्चे दाने डालकर
अन्न-नलिका
तथा श्र्वास नलिका को बंद कर
देना या उसकी देह पर चारपाई
के पांव रखकर उस पर बैठ जाना
इत्यादि । यह काम दाइयों,
बड़ी-बूढ़ियों
और मांओं के द्वारा उन सबके
समक्ष किया जाता था और आने
वाली दाई को भारी विदायी भी
दी जाती । आज भी राजस्थान में
कई जगह यह कारमाने रुके नहीं
हैं । भले ही भारतीय दंड संहिता
की धारा में ऐसी शिशु
हत्या के लिए कड़ी स.जा
का प्रावधान है,
फिर भी
ऐसी हत्याएं दर्ज ही नहीं की
जाती,
इसलिए
किसी को दंडित भी नहीं किया
जाता ।
इस
उदाहरण के द्वारा जो लोग दुहाई
देते हैं कि औरत ही औरत की
दुश्मन है उनका दावा मैं गलत
मानती हूं,
इसलिए
कि घर अंदर शिशु हत्या का काम
पूरा करने वाली ये तमाम औरतें
बाहर बैठे हुए पुरूषों के दबाव
और डर के कारण यह करती हैं ।
जब भंवरी देवी जैसी कोई औरत
किसी दूसरी औरत-जात
को सामाजिक कुरीतियों से बचाना
चाहती है तो अंतिमतः गांव के
पुरूष ही उसे जघन्य 'स.जा'
देकर
उसका विद्रोह कुचलने का कदम
उठाते हैं । यह उदाहरण भी इसी
राजस्थान की भूमि पर देखा जा
सकता है ।
स्त्री-शिशु-हत्या
की परंपरा में एक और कड़ी जड़ती
है स्त्री-भ्रूण-हत्या
से जो आज सारे देश पर ही संकट
के रूप में छाई है । यहां दो-दो
डॉक्टर इस काम को संपन्न करते
हैं -
एक तो वे
जो सोनोग्राफी टेस्ट करते
हैं और बता देते हैं कि किसी
महिला को गर्भ है या नहीं और
गर्भस्थ शिशु स्त्री है या
पुरूष । दूसरा डॉक्टर वह जो
इस भ्रूण को डॉक्टरी उपायों
से अर्थात्
कयूरेटिंग से निकाल फेंकता
है ।
सरकार
के दो नये कानूनों-एम.टी.पी.
एक्ट और
पी.एन.डी.टी
एक्ट के अंतर्गत प्रावधान है
कि प्रत्येक जिले में एक सक्षम
अधिकारी की घोषणा की जानी
चाहिए जिसके पास ऐसे दोनों
तरह के डॉक्टरों का रजिस्ट्रेशन
होगा । यदि जनगणना आयोग ऐसे
गांवों की सूची बना ले जहाँ
स्त्री शिशु-लिंग
अनुपात अत्यंत कम है,
तो वहाँ
के सक्षम अधिकारी द्वारा कुछ
कारगर कदम उठाए जा सकते हैं
।
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योजना ..... में प्रकाशित
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